श्रीदत्तात्रेय प्रभुजीं के २४ गुरू (हिंदी)
श्रीदत्तात्रेय प्रभुजीं के २४ गुरू
एक बार राजा यदु ने देखा कि एक त्रिकालदर्शी तरुण अवधूत ब्राह्मण निर्भय विचर रहे हैं तो उन्होंने उनसे पूछा,‘‘आप कर्म तो करते ही नहीं, फिर आपको यह अत्यंत निपुण बुद्धि कहां से प्राप्त हुई, जिसका आश्रय लेकर आप परम विद्वान होने पर भी बालक के समान संसार में विचरते हैं? संसार के अधिकांश लोग काम और लोभ के दावानल से जल रहे हैं, परंतु आपको देखकर ऐसा मालूम होता है कि आप उससे मुक्त हैं। आप तक उसकी आंच भी नहीं पहुंच पाती। आप सदा-सर्वदा अपने स्वरूप में ही स्थित हैं। आपको अपनी आत्मा में ही ऐसे अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव कैसे होता है?’’
ब्रह्मवेत्ता दत्तात्रेय जी ने कहा, ‘‘राजन! मैंने अपनी बुद्धि से गुरुओं का आश्रय लिया है, उनसे शिक्षा ग्रहण करके मैं इस जगत में मुक्तभाव से स्वच्छंद विचरता हूं। तुम उन गुरुओं के नाम और उनसे ग्रहण की हुई शिक्षा को सुनो।’’
1. पृथ्वी : मैंने पृथ्वी के धैर्य और क्षमारूपी दो गुणों को ग्रहण किया है। धीर पुरुष को चाहिए कि वह कठिन से कठिन विपत्ति काल में भी अपनी धीरता और क्षमावृत्ति न छोड़े।
2. वायु : शरीर के अंदर रहने वाली प्राणवायु जिस प्रकार आहार मात्र की आकांक्षा रखती है और उसकी प्राप्ति से ही संतुष्ट हो जाती है, उसी प्रकार साधक जीवन निर्वाह के लिए ही भोजन करे, इन्द्रियों की तृप्ति के लिए नहीं तथा शरीर के बाहर रहने वाली वायु जैसे सर्वत्र विचरण करते हुए भी किसी में आसक्त नहीं होती, उसी प्रकार साधक को चाहिए कि वह अपने को शरीर नहीं, आत्मा के रूप में देखे। शरीर और उसके गुणों का आश्रय होने पर भी उनसे दूर रहे। यही मैंने वायु से सीखा है।
3. आकाश : जितने भी सूक्ष्म-स्थूल शरीर हैं, उनमें आत्मरूप में सर्वत्र स्थित होने के कारण सभी में ब्रह्म है। इसका उपदेश मुझे आकाश ने दिया। भिन्न-भिन्न लगने पर भी आकाश एक और अखंड ही है।
4. जल : जैसे जल स्वभाव से ही स्वच्छ, स्निग्ध, मधुर और पवित्र करने वाला है, उसी प्रकार साधक को स्वभाव से ही मधुर भाषी और लोकपावन होना चाहिए।
5. अग्रि : मैंने अग्रि से तेजस्वी और ज्योतिर्मय होने के साथ ही यह शिक्षा ग्रहण की कि जैसे अग्नि लंबी-चौड़ी या टेढ़ी-सीधी लकडिय़ों में रहकर उनके समान ही रूपांतरित हो जाती है, वास्तव में वह वैसी है नहीं, वैसे ही सर्वव्यापक आत्मा भी अपनी माया से रचे हुए कार्य कारण रूप जगत में व्याप्त होने से उन-उन वस्तुओं के नाम-रूप ग्रहण कर लेती है, वास्तव में वह वैसी है नहीं।
6. चंद्रमा : काल की अदृश्य गति के प्रभाव से चंद्रकला घटती और बढ़ती लगती है। वास्तव में चंद्रमा तो सदा एक-सा ही रहता है, उसी प्रकार जीवन से लेकर मरण तक शारीरिक अवस्थाएं भी आत्मा से अलिप्त हैं। यह गूढ़ ज्ञान मैंने चंद्रमा से ग्रहण किया।
7. सूर्य : सूर्य से मैंने दो शिक्षाएं प्राप्त कीं- अपनी प्रखर किरणों द्वारा जल-संचय और समयानुसार उस संचय का यथोचित वितरण तथा विभिन्न पात्रों में परिलक्षित सूर्य स्वरूपत: भिन्न नहीं है, इसी प्रकार आत्मा का स्वरूप भी एक ही है।
8. कबूतर : कबूतर से अवधूत दत्तात्रेय जी ने जो शिक्षा ग्रहण की उसके लिए उन्हें युद्ध के समक्ष एक लंबा आख्यान प्रस्तुत करना पड़ा, जिसका भावार्थ संसार से आसक्ति न रखना है।
9. अजगर : प्रारब्धवश जो भी प्राप्त हो जाए उसी में संतोष करना, कर्मेंद्रियोंं के होने पर भी चेष्टारहित रहना, यह मैंने अजगर से सीखा।
10. समुद्र : समुद्र ने मुझे सर्वदा प्रसन्न और गंभीर रहना सिखाया। समुद्र के शांत भावों की तरह साधक को भी सांसारिक पदार्थों की प्राप्ति और अप्राप्ति पर हर्ष-शोक नहीं होना चाहिए।
11. पतंगा : रूप पर मोहित होकर प्राणोत्सर्ग कर देने वाले पतंगे की भांति मायिक पदार्थों के लिए बहुमूल्य जीवन का विनाश न हो, यह मैंने पतंगे से सीखा।
12. मधुमक्खी : साधक मधुमक्खी की भांति संग्रह न करे। शरीर के लिए उपयोगी रोटी के कुछ टुकड़े कई घरों से मांग ले।
13. हाथी : साधक भूलकर भी स्त्री का स्पर्श न करे अन्यथा हाथी-जैसी दुर्दशा को प्राप्त होगा।
14. मधु निकालने वाला : जैसे मधुमक्खियों द्वारा कठिनाई से संचित किए गए मधु का दूसरा ही उपभोग करता है, इसी प्रकार कृपण व्यक्ति भी अपने संचित धन का न तो स्वयं उपभोग करता है और न शुभ कार्यों में व्यय ही कर पाता है। अत: गृहस्थ को अपने अर्जित धन को शुभ कार्य में लगाने की शिक्षा मैंने उक्त पुरुष से ग्रहण की।
15. हिरन : वनवासी संन्यासी यदि विषय संबंधी गीत में आसक्त हुआ तो हिरन की भांति व्याघ्र के बंधन में पड़ जाता है।
16. मछली : मछली स्वाद के लोभ में मृत्यु को प्राप्त होती है। अत: इंद्रिय-संयम का पाठ मैंने मत्स्यगुरु से सीखा।
17. पिंगला : रात्रि भर प्रतीक्षा के पश्चात् भी जब उस धन-लोलुपा वेश्या के पास कोई नहीं आया तब वह निराश हो गई और उसे वैराग्य हो गया। आशा का परित्याग करने वाली इस वेश्या से मैंने शिक्षा ग्रहण की।
18. कुर्रर पक्षी : इस पक्षी की चोंच में जब तक मांस का टुकड़ा था तभी तक अन्य पक्षी इसके शत्रु थे। जैसे ही उसने टुकड़ा छोड़ दिया, उसके पास से सभी पक्षी दूर हो गए। इससे मुझे त्याग की शिक्षा मिली।
19. बालक : बालक को जैसे मान-अपमान और परिवार की चिंता नहीं करनी चाहिए, अत: मैंने बालक को भी गुरु माना।
20. कुंवारी कन्या : धान कूटती कन्या को हाथों में अनेक चूडिय़ों के शब्द से जो ग्लानि हो रही थी, वह उस समय दूर हो गई जब दोनों हाथों में केवल एक-एक चूड़ी ही रही, इसलिए मैंने कन्या से अकेले ही विचरण करने की शिक्षा ग्रहण की।
21.बाण-निर्माता : इस व्यक्ति से मैंने शिक्षा ली कि साधक अभ्यास के द्वारा अपने मन को वश में कर उसे सावधानी से लक्ष्य में लगा दे।
22. सर्प : इससे मैंने कई गुण ग्रहण किए। जैसे एकाकी विचरण, किसी की सहायता न लेना, कम बोलना और मठ या घर न बनाना।
23. मकड़ी : मकड़ी बिना किसी अन्य सहायक के अपनी माया से रचित संसार के अद्भुत कौशल का दर्शन कराती है। मकड़ी अपने हृदय से मुंह के द्वारा जाला फैलाकर उसी में रमण करती है और उसे निगल भी जाती है।
24. भृंगीकीट : मैंने इस कीड़े से यह शिक्षा ग्रहण की कि यदि प्राणी स्नेह, द्वेष अथवा भय से जान-बूझकर एकाग्र रूप से अपना मन किसी में लगा दे तो उसे उसी वस्तु का स्वरूप प्राप्त हो जाता है, जैसे भृंगी द्वारा पकड़े गए कीड़े का हो जाता है।
दत्तात्रेय जी ने अपने चौबीस गुरुओं का वर्णन कर उपसंहार करते हुए कहा,‘‘ राजन! अकेले गुरु से ही यथेष्ट और सुदृढ़ बोध नहीं होता, उसके लिए अपनी बुद्धि से भी बहुत कुछ सोचने-समझने की आवश्यकता है। देखो! ऋषियों ने एक ही अद्वितीय ब्रह्मस्वरूप का अनेक प्रकार से गान किया है।’’
🙏🌹जय श्रीकृष्णा🌹🙏
खुप छान आहे
ReplyDeleteGood vihcar
ReplyDelete🙏🙏 दंडवत प्रणाम 🙏🙏
ReplyDeleteदेवाची लिळा अपरंपार आहे दंडवत प्रणाम 🙏🌹
ReplyDelete🙏🙏 दंडवत प्रणाम 🙏🙏
ReplyDeleteदंडवत प्रणाम प्रभु बाबा खुप छान
ReplyDelete9307941781
DeleteDandvat Pranam 🙏
ReplyDeleteKhup chan dandwat pranam
ReplyDeleteखूप छान माहिती आहे
ReplyDeleteसविस्तर वर्णन असतं तर बरं झालं असतं । तसं ब्रम्हविद्या शास्त्र हे मराठीतच ऐकायला बंद वाटतं। तरीही काही हरक़त नाही, आपला प्रयत्न अनेकांच्या उपयोगिता येईलच।
ReplyDeleteDandvat parnam
ReplyDelete🙏🙏
Deleteदंडवत प्रणाम अप्रतिम लेख
ReplyDeleteदंडवत प्रणाम🙏🏽🙏🏽
ReplyDeleteKhup chhan dandavat pranam
ReplyDeleteदंडवत प्रणाम ❤️🦚🙌🏻👏 जय श्री कृष्ण 🦚🙇🌺🎀
ReplyDeleteUttam aahe
ReplyDeleteBest details and important.
ReplyDeletebharatnalawade053@gmail.com
ReplyDeleteBharat Nalawade
ReplyDeleteGood 👍
ReplyDeleteDandvat pranam gi
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