सन्त और बिल्ली
एक संत जी ने एक बिल्ली पाल रखी थी। और वो भी इतनी समझदार थी, कि जब शाम के समय संत जी सतसंग करते, तो रात्रि के अन्धकार को दूर करने के लिए एक चिराग़ जलाकर उस बिल्ली के माथे पर चिराग़ रख देते थे।
यह दृश्य देखकर सतसंगीजनों को बड़ा आश्चर्य होता परन्तु वे कहते कुछ नहीं।एक दिन एक सतसंगी ने बिल्ली की हकीकत का पता लगाने की एक बेहतरीन युक्ति खोजी।
वह सतसंगी कहीं से एक चूहा पकड़ लाया और उसे चादर में छुपाकर, चादर ओढ़कर सतसंग में गया। प्रतिदिन की तरह ही बिल्ली के माथे पर चिराग़ रख दिया गया और सतसंग शुरू कर दिया गया । कुछ ही समय पश्चात उस सतसंगी ने चुपके से वह चूहा बिल्ली के सामने छोड़ दिया । जैसे ही बिल्ली ने चूहे को देखा वो सब कुछ भूलकर चूहे पर झपट पड़ी और चिराग़ को नीचे गिरा दिया जिससे अंधेरा हो गया।
आइए हम सब इस कहानी के आशय को समझने का प्रयास करते हैं। शायद हमसब भी उस बिल्ली की ही तरह है । जब तक सतसंग करते हैं या ज्ञान की बातें करते हैं या कोई इच्छित वस्तु हमारे सामने नहीं होती है, तब तक हम सब उस बिल्ली की तरह ही शान्त बने रहते हैं।जैसे ही हमारे सामने कोई इच्छित पदार्थ सामने आता है, या जैसे ही संसार में व्यवहार करने लग जाते हैं। तो हम अधर्म करने से भी परहेज़ नहीं करते हैं। और उस समय पता नहीं सतसंग का ज्ञान कहाँ चला जाता है। और हम अपने ज्ञान रूपी चिराग़ को नीचे गिरा देते हैं । जिससे अज्ञान का अंधेरा हो जाता है । और हम पतित हो जाते हैं।
किसी भी व्यक्ति को ज्ञान हो जाना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है, प्राप्त ज्ञान को अपने अनुभव की कसौटी पर कसकर जीवन में उतार लेना
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जय श्रीकृष्ण प्रभु प्रेमियों...
दंडवत प्रणाम 🙏
सच्चीबात है.मन बढाई चंचल है
ReplyDeleteएकदम सही बात कही👌
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