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Showing posts with the label बोध कथा

देवाची प्राप्ती कोणाला होते

 एक राजा होता, सद्भक्त होता,त्याला देव प्रसन्न झालें, देव म्हणालें, राजा तुला जे हवे ते माग. राजा प्रजेच्या हिताचा विचार करायचा, त्यांच्या सुखी जीवनाचा विचार करायचा म्हणाला देवा जसे आपण मला दर्शन दिले तसे राज्यातील प्रत्येकाला दर्शन ध्या म्हणजे सारे सुखी होतील. देव म्हणाले राजा हे असंभव आहे प्रत्येकालाच देव हवा आहे असे नसते, पण राजा प्रजेचे हित पाहणारा होता त्याने हट्टच केला, देव म्हणाला ठीक आहे समोरच्या डोंगरावर सर्वांना घेऊन ये मी दर्शन देईन . राजाला खूप आनंद झाला, दुसऱ्या दिवशी साऱ्या प्रजेला घेऊन डोंगराकडे निघाला. चालता चालता लोकांना एके ठिकाणी तांब्याची नाणी दिसली काही लोक ती जमवू लागली, राजा म्हणाला अरे यापेक्षा महत्वाचे आपणाला भेटणार आहे चला माझ्याबरोबर पुढे चला पण त्यानी राजाचे ऐकले नाही, राजा इतरांना घेऊन पुढे निघाला  तर पुढे चांदीची भरपूर नाणी  दिसली आणि काही लोक तिकडेच धावले त्यांनी असा विचार केला पहिले चांदीची नाणी घेऊ मग देवाला भेटू देव कुठं जातोय? राजा म्हणाला त्या चांदीच्या नाण्यासाठी नशिबाला लाथ मारू नका पण कोणच ऐकायच्या मनस्थिती नव्हते प्रत्येक जण नाणी ज...

सन्त और बिल्ली

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एक संत जी ने एक बिल्ली पाल रखी थी। और वो भी इतनी समझदार थी, कि जब शाम के समय संत जी सतसंग करते, तो रात्रि के अन्धकार को दूर करने के लिए एक चिराग़ जलाकर उस बिल्ली के माथे पर चिराग़ रख देते थे।  यह दृश्य देखकर सतसंगीजनों को बड़ा आश्चर्य होता परन्तु वे कहते कुछ नहीं।एक दिन एक सतसंगी ने बिल्ली की हकीकत का पता लगाने की एक बेहतरीन युक्ति खोजी। वह सतसंगी कहीं से एक चूहा पकड़ लाया और उसे चादर में छुपाकर, चादर ओढ़कर सतसंग में गया। प्रतिदिन की तरह ही बिल्ली के माथे पर चिराग़ रख दिया गया और सतसंग शुरू कर दिया गया । कुछ ही समय पश्चात उस सतसंगी ने चुपके से वह चूहा बिल्ली के सामने छोड़ दिया । जैसे ही बिल्ली ने चूहे को देखा वो सब कुछ भूलकर चूहे पर झपट पड़ी और चिराग़ को नीचे गिरा दिया जिससे अंधेरा हो गया। आइए हम सब इस कहानी के आशय को समझने का प्रयास करते हैं। शायद हमसब भी उस बिल्ली की ही तरह है । जब तक सतसंग करते हैं या ज्ञान की बातें करते हैं या कोई इच्छित वस्तु हमारे सामने नहीं होती है, तब तक हम सब उस बिल्ली की तरह ही शान्त बने रहते हैं।जैसे ही हमारे सामने कोई इच्छित पदार्थ सामने आत...

कर्म और आशिर्वाद का फल

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इन्सान जैसा कर्म करता है, कुदरत या परमात्मा उसे वैसा ही उसे लौटा देता है एक बार द्रोपदी सुबह तड़के स्नान करने यमुना घाट पर गयी भोर का समय था। तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी। साधु स्नान के पश्चात अपनी दुसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोंके से उड़ पानी में चली गयी ओर बह गयी। सँयोगवश साधु ने जो लँगोटी पहनी वो भी फटी हुई थी। साधु सोच मे पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए। थोड़ी देर में सुर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड बढ़ जाएगी। साधु तेजी से पानी के बाहर आया और झाड़ी में छिप गया। द्रोपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साडी जो पहन रखी थी, उसमे आधी फाड़ कर उस साधु के पास गयी ओर उसे आधी साड़ी देते हुए बोली- तात मैं आपकी परेशानी समझ गयी। इस वस्त्र से अपनी लाज ढँक लीजिए। साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा ले लिया और आशीष दिया। जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान तुम्हारी लाज बचाएंगे। और जब भरी सभा मे चीरहरण के समय द्रोपदी की करुण पुकार नारद ने भगवान तक पहुंचायी तो भगवान ने कहा- " कर्मों के बदले मेरी कृपा बरसती है...

एक आदर्श सुवर्णदान - दानविर कर्ण

कुरुक्षेत्रावर सुरु असलेल्या कौरव-पांडवांच्या युद्धाचा तो सतरावा दिवस.  वेळ जवळ जवळ सुर्यास्ताची.  कौरव आणि पांडव या दोन्ही पक्षांतील योद्धे सारे स्तब्ध उभे होते. समोर जमिनीवर रक्तात न्हाऊन निघालेला महावीर कर्ण मृत्युच्या शेवटच्या घटका मोजत होता. इथे कर्ण मृत्युच्या दारात आणि आसपास सभोवताली पडला होता मृत सैनिकांचा रक्तबंबाळ झालेल्या प्रेतांचा खच ईथे कर्णाचा शेवट पहात उभ्या योध्यांची मुग्ध शांतता आणि चहुकडे फक्त आकांत. त्या सैनिकांच्या आप्त स्वकीयांचा.  कर्ण आपल्या मावळत्या पित्याला शेवटचा निरोप देत असतानाच त्यांचे लक्ष वेधले गेले एका पित्याच्या मदतीसाठी मारलेल्या हाकेकडे, एका दीर्घ आकांताकडे, एका करुणामयी विनवणीकडे. " अरे या कुरुक्षेत्रावर कोणी आहे का मला मदत करणारा " युद्धात मुलगा मारला गेलाय माझा.  त्याच्या अंतिम कार्यासाठीही द्रव्य नाही माझ्याकडे. कोणी आहे का दानवीर. ? ही मदतीसाठी मारलेली हाक दानवीर कर्णाने ऐकली आणि त्याने त्या याचकास लगेच जवळ बोलावले. त्याला इच्छा विचारली तेव्हा खरे तर त्या याचकास देण्यासाठी त्या क्षणी कर्णाकडे स्वता:हा कडे काहीच द्रव्य नव्हते. ...

निष्काम प्रेम,अर्थात निश्काम भक्ती

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एक गाँव में एक बूढ़ी माई रहती थी । माई का आगे – पीछे कोई नहीं था इसलिए बूढ़ी माई बिचारी अकेली रहती थी । एक दिन उस गाँव में एक साधू आया । बूढ़ी माई ने साधू का बहुत ही प्रेम पूर्वक आदर सत्कार किया । जब साधू जाने लगा तो बूढ़ी माई ने कहा – “ महात्मा जी ! आप तो ईश्वर के परम भक्त है । कृपा करके मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिये जिससे मेरा अकेलापन दूर हो जाये । अकेले रह – रह करके उब चुकी हूँ ”   साधू ने मुस्कुराते हुए अपनी झोली में से बाल – गोपाल की एक मूर्ति निकाली और बुढ़िया को देते हुए कहा – “ माई ये लो आपका बालक है, इसका अपने बच्चे की तरह प्रेम पूर्वक लालन-पालन अर्थात परम पूर्वक भक्ती करती रहना। बुढ़िया माई बड़े लाड़-प्यार से ठाकुर जी का लालन-पालन, भक्ती करने लगी। एक दिन गाँव के कुछ शरारती बच्चों ने देखा कि माई मूर्ती को अपने बच्चे की तरह लाड़ कर रही है । नटखट बच्चो को माई से हंसी – मजाक करने की सूझी । उन्होंने माई से कहा – “अरी मैय्या सुन ! आज गाँव में जंगल से एक भेड़िया घुस आया है, जो छोटे बच्चो को उठाकर ले जाता है। और मारकर खा जाता है । तू अपने लाल का ख्याल रखना, कही भेड़िया इसे उठाक...

देण्याचे महत्व

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  एक व्यक्ती मागील दोन दिवसा पासुन वाळवंटात हरवला होता, त्याच्या जवळचे पाणी आणि जेवण संपले होते. आता त्याची परिस्तिथी अशी होती कि जर का त्याला पाणी मिळाले नाही तर त्याचे मरण निश्चित होते, याची जाणीव त्यालाही होती. आता तो हताश होऊन सभोवताली दूर दूर पर्यंत जेवढी नजर जाईल तिथपर्यंत डोळे ताणून ताणून पहात होता. त्याची नजर जीव वाचवण्यासाठी पाणी शोधत होती. तेवढ्यात त्याची नजर काही अंतरावर असलेल्या एका झोपडयावर गेली, तसाच तो थबकला.त्याला वाटले हा भास तर नाही...? नाहीतर मग नक्की हा मृगजळ असेल. पण काही असो, तिकडे जाऊया, काही असेल तर मिळेल असा विचार करत पाय ओढत स्वतःचे थकलेले शरीर घेऊन तो निघाला. काही वेळातच त्याच्या लक्षात आले की तो भास नव्हता, झोपडी खरोखरच होती. पण ती झोपडी रिकामी होती,  त्या झोपडीत कोणीच नव्हते आणि झोपडीला बघितल्यावर असे वाटत होते कि बऱ्याच दिवसांपासून, कदाचित वर्षांपासून तिथे कुणीही आलेला नाही. आता हा पाणी मिळेल या आशेने तो आत शिरला. आणि समोरच दृष्य पाहून तो थबकलाच. माणूस मागतो एक डोळा आणि देव देतो दोन अशी त्याची स्थिती झाली होती, तिथे बोरिंग ( एक हातपंप ) होता आणि त...

देवदूत की हंसी

मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियाँ जुड़वाँ – एक अभी भी उस मृत स्त्री के शव से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आँसू उसकी आँखों के पास सूख गए हैं – तीन छोटी जुड़वाँ बच्चियाँ और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा? उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जाकर अपने प्रधान को कहा - मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वाँ बच्चियाँ हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत मां से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन दे दिया जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है। मृत्यु के देवता ने कहा - तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी इच्छा से मृत्यु होती है, जिसकी इच्छा ...

विश्वास की परिभाषा

दंडवत प्रणाम  एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें...। बेटी ने ये भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते...!! जब संत घर आए तो पिता पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे। एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी। संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से ये कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई है। संत... "मुझे लगता है कि आप मेरी ही उम्मीद कर रहे थे... !" पिता... नहीं, आप कौन हैं... ? संत ने अपना परिचय दिया। और फिर कहा... "मुझे ये खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप को मेरे आने का आभास था।" पिता... ओह ये बात... । खाली कुर्सी। आप...! आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाज़ा बंद करेंगे... ! संत को ये सुनकर थोड़ी हैरत हुई, फिर भी दरवाज़ा बंद कर दिया... । पिता.."दरअसल इस खाली कुर्सी का राज़ मैंने किसी को नहीं बताया। अपनी बेटी को भी नहीं। पूरी ज़िंदगी, मैं ये जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है। मंदिर जाता था, पुजारी जी के श्लोक सुनता।वो सिर के ऊपर से गुज़र जाते। कुछ पल्ले नहीं पड़ता था। मैंने फिर प्रार्थना की को...

श्रद्धा के फूल

एक बार किसी गांव में एक बडे संत महात्मा का अपने शिष्यो सहित आगमन हुआ। सब इस होड़ में लग गये कि क्या भेंट करें। इधर गाँव में एक गरीब मोची था। उसने देखा कि मेरे घर के बाहर के तालाब में बेमौसम का एक कमल खिला है। उसकी इच्छा हुई कि, आज नगर में महात्मा आए हैं, सब लोग तो उधर ही गए हैं, आज हमारा काम चलेगा नहीं, आज यह फूल बेचकर ही गुजारा कर लें। वह तालाब के अंदर कीचड़ में घुस गया। कमल के फूल को लेकर आया। केले के पत्ते का दोना बनाया..और उसके अंदर कमल का फूल रख दिया। पानी की कुछ बूंदें कमल पर पड़ी हुई हैं ..और वह बहुत सुंदर दिखाई दे रहा है। इतनी देर में एक सेठ पास आया और आते ही कहा-''क्यों फूल बेचने की इच्छा है ?'' आज हम आपको इसके दो चांदी के रूपए दे सकते हैं। अब उसने सोचा ...कि एक-दो आने का फूल! इस के दो रुपए दिए जा रहे हैं। वह आश्चर्य में पड़ गया। इतनी देर में नगर-सेठ आया । उसने कहा ''भई, फूल बहुत अच्छा है, यह फूल हमें दे दो'' हम इसके दस चांदी के सिक्के दे सकते हैं। मोची ने सोचा, इतना कीमती है यह फूल। नगर सेठ ने मोची को सोच मे पड़े देख कर कहा कि अगर पैसे कम हों, ...

देव जर आहे,तर तो सर्वांना सुखी का ठेवत नाही

दण्डवत प्रणाम... एका मंदिराच्या बाजुला एका न्हाव्याचे दुकान होते.   मंदिराचा पुजारी व न्हावी यांची मैत्री होती.   न्हावी नेहमी त्या पुजाऱ्याला विचारत असे,      " देव जर आहे,तर तो सर्वांना सुखी का ठेवत नाही ?    कधी दुष्काळ, कधी महापूर, कधी महामारी अश्या अनेक आपत्ती का."    पुजारी तेव्हा काहीच बोलत नसत.    एके दिवशी ते पुजारी त्या न्हाव्याला घेवुन, देवळा बाहेर बसलेल्या एका भिकाऱ्याकडे गेले.   त्या भिकाऱ्या कडे पहात पुजारी बुवा त्या न्हाव्याला म्हणाले,    त्याचे केस खूप वाढले आहेत,दाढी पण खूप वाढली आहे.   पुजारी त्या न्हाव्याला म्हणाले,   तू असतांना याचे केस,दाढी इतके का वाढलेले आहेत?   न्हावी म्हणाला,    भिकारी माझ्या जवळ आलाच नाही.   त्याने माझ्याशी सम्पर्क केलाच नाही.   मग मी काय करणार?   पुजारी म्हणाले,अगदी बरोबर!       जसा त्या भिकाऱ्याने तुझ्याशी संपर्क केला नाही, म्हणून त्याची अशी अवस्था झाली, तसंच आपण जर ईश्वराच्या संपर्कात आलोच नाही,त्याची आराधना...

चिंता

एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था।  राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया। राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है।  विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई। कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं? संन्यासी ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे। संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी। राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं। सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है। अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं, हम तो इंसान हैं। अगर भ...

तीन सारख्या मूर्ती

    सर्वज्ञ श्रीचक्रधर स्वामींनी 114 दृष्टांत सांगितले आहे त्यातील हा एक दृष्टांत त्योड्या वेगळ्या पद्धतीने सांगण्याचा प्रयत्न केला आहे,सुज्ञ व्यक्तींनी समजून घ्यावा.  सर्व साधू-संत सांगतात की, परमार्थात श्रवण महत्त्वाचे, पण तेच श्रवण कसे असावे...ना बिरबलाच्या मूर्ती सारखं! एकदा अकबराने तीन सारख्या मूर्ती आणल्या. सर्वात चांगली मूर्ती कोणती ते बिरबलाला शोधून काढायला सांगितलं. त्या तीनही मूर्तींच्या कानात छिद्र होती. बिरबलाने तीनही मूर्तींच्या कानातील छिद्रातून एक एक बारीक तार घातली. एका मूर्तीच्या कानातून घातलेली तार मूर्तीच्या दुस-या कानातून बाहेर आली. दुस-या मूर्तीच्या कानातून घातलेली तार तोंडातून बाहेर आली व तिस-या मूर्तीच्या कानातून घातलेली तार हृदयातून आली. बिरबलाने सांगितले 'ही तिसरी मूर्ती चांगली आहे!  श्रोते तीन प्रकारचे असतात. एक प्रकार म्हणजे एका कानाने ऐकून दुस-या कानाने सोडून देतात . दुसरे श्रोते एका कानाने ऐकतात व ऐकलेले दुस-याला सांगतात. तिसरे श्रोते कानाने ऐकलेले ह्रुदयात साठवतात. त्याचे मनन, चिंतन करतात!म्हणून साधूसंत सांगतात, आपण जे श्रवण करतो, वाचन...