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Showing posts from April, 2021

अनमोल जीवन

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यह कहानी पुराने समय की है। एक दिन एक आदमी गुरु के पास गया और उनसे कहा, 'बताइए गुरुजी, जीवन का मूल्य क्या है?' गुरु ने उसे एक पत्थर दिया और कहा, 'जा और इस पत्थर का मूल्य पता करके आ, लेकिन ध्यान रखना पत्थर को बेचना नहीं है।' वह आदमी पत्थर को बाजार में एक संतरे वाले के पास लेकर गया और संतरे वाले को दिखाया और बोला, 'बता इसकी कीमत क्या है?'संतरे वाला चमकीले पत्थर को देखकर बोला, '12 संतरे ले जा और इसे मुझे दे जा।' वह आदमी संतरे वाले से बोला, 'गुरु ने कहा है, इसे बेचना नहीं है।'  और आगे वह एक सब्जी वाले के पास गया और उसे पत्थर दिखाया। सब्जी वाले ने उस चमकीले पत्थर को देखा और कहा, 'एक बोरी आलू ले जा और इस पत्थर को मेरे पास छोड़ जा।' उस आदमी ने कहा, 'मुझे इसे बेचना नहीं है, मेरे गुरु ने मना किया है. आगे एक सोना बेचने वाले सुनार के पास वह गया और उसे पत्थर दिखाया। सुनार उस चमकीले पत्थर को देखकर बोला, '50 लाख में बेच दे'। उसने मना कर दिया तो सुनार बोला, '2 करोड़ में दे दे या बता इसकी कीमत जो मांगेगा, वह दूंगा तुझे...।'...

एक आदर्श सुवर्णदान - दानविर कर्ण

कुरुक्षेत्रावर सुरु असलेल्या कौरव-पांडवांच्या युद्धाचा तो सतरावा दिवस.  वेळ जवळ जवळ सुर्यास्ताची.  कौरव आणि पांडव या दोन्ही पक्षांतील योद्धे सारे स्तब्ध उभे होते. समोर जमिनीवर रक्तात न्हाऊन निघालेला महावीर कर्ण मृत्युच्या शेवटच्या घटका मोजत होता. इथे कर्ण मृत्युच्या दारात आणि आसपास सभोवताली पडला होता मृत सैनिकांचा रक्तबंबाळ झालेल्या प्रेतांचा खच ईथे कर्णाचा शेवट पहात उभ्या योध्यांची मुग्ध शांतता आणि चहुकडे फक्त आकांत. त्या सैनिकांच्या आप्त स्वकीयांचा.  कर्ण आपल्या मावळत्या पित्याला शेवटचा निरोप देत असतानाच त्यांचे लक्ष वेधले गेले एका पित्याच्या मदतीसाठी मारलेल्या हाकेकडे, एका दीर्घ आकांताकडे, एका करुणामयी विनवणीकडे. " अरे या कुरुक्षेत्रावर कोणी आहे का मला मदत करणारा " युद्धात मुलगा मारला गेलाय माझा.  त्याच्या अंतिम कार्यासाठीही द्रव्य नाही माझ्याकडे. कोणी आहे का दानवीर. ? ही मदतीसाठी मारलेली हाक दानवीर कर्णाने ऐकली आणि त्याने त्या याचकास लगेच जवळ बोलावले. त्याला इच्छा विचारली तेव्हा खरे तर त्या याचकास देण्यासाठी त्या क्षणी कर्णाकडे स्वता:हा कडे काहीच द्रव्य नव्हते. ...

क्रोध क्षमा से ही शांत होता है

शत्रुता में क्रोध के सबब नीति-अनीति का विवेक नहीं रहता और व्यक्ति की मानसिकता कैसे भी निकृष्ट कृत्य पर उतर आती है. इसी संदर्भ में महाभारतयुद्ध का एक मार्मिक प्रसंग- युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने क्रोधावेश में अनीति से द्रौपदी के पाँच युवा पुत्रों की रात के अंधेरे में हत्या कर डाली थी, जबकि वे अपनी शैय्या पर बेसुध गहरी नींद सो रहे थे. इस घटना ने तो लाज़मी तौरपर न सिर्फ़ पाँचों पांडव भाइयों की मानसिक दशा बिगाड़कर रख दी,माँ होने के कारण द्रौपदी को भी बेइंतिहा आंतरिक क्लेश पहुँचा. दुख के सैलाब का उसके आगे कोई पारावार न था. उसे स्वयं को संभालना मुश्क़िल हो गया. विक्षिप्तों जैसी उसके मन की अंतर्दशा बन गयी. टकटकी लगाये बस आगे की ओर घूरती जाये, लेकिन मुँह से एक बोल न फूटे. आँखें टपटप बही जा रही हैं और उनके खारे जल का बहाव किसी तरह कम होने को न आये. दुख के अतिरेक में देह की इंद्रियाँ तक साथ नहीं देतीं. शिथिल हो जाती हैं.  इसी बीच घोर प्रयत्न के बाद प्रतिशोध की अग्नि में जलते अश्वत्थामा को किसी तरह रस्सियों से बाँध पकड़कर द्रौपदी के सम्मुख ला प्रस्तुत किया गया कि वही स्वयं अपने अपराधी के लिय...