निष्काम प्रेम,अर्थात निश्काम भक्ती

एक गाँव में एक बूढ़ी माई रहती थी । माई का आगे – पीछे कोई नहीं था इसलिए बूढ़ी माई बिचारी अकेली रहती थी । एक दिन उस गाँव में एक साधू आया । बूढ़ी माई ने साधू का बहुत ही प्रेम पूर्वक आदर सत्कार किया । जब साधू जाने लगा तो बूढ़ी माई ने कहा – “ महात्मा जी ! आप तो ईश्वर के परम भक्त है । कृपा करके मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिये जिससे मेरा अकेलापन दूर हो जाये । अकेले रह – रह करके उब चुकी हूँ ” साधू ने मुस्कुराते हुए अपनी झोली में से बाल – गोपाल की एक मूर्ति निकाली और बुढ़िया को देते हुए कहा – “ माई ये लो आपका बालक है, इसका अपने बच्चे की तरह प्रेम पूर्वक लालन-पालन अर्थात परम पूर्वक भक्ती करती रहना। बुढ़िया माई बड़े लाड़-प्यार से ठाकुर जी का लालन-पालन, भक्ती करने लगी। एक दिन गाँव के कुछ शरारती बच्चों ने देखा कि माई मूर्ती को अपने बच्चे की तरह लाड़ कर रही है । नटखट बच्चो को माई से हंसी – मजाक करने की सूझी । उन्होंने माई से कहा – “अरी मैय्या सुन ! आज गाँव में जंगल से एक भेड़िया घुस आया है, जो छोटे बच्चो को उठाकर ले जाता है। और मारकर खा जाता है । तू अपने लाल का ख्याल रखना, कही भेड़िया इसे उठाक...