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Showing posts from May, 2021

सन्त और बिल्ली

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एक संत जी ने एक बिल्ली पाल रखी थी। और वो भी इतनी समझदार थी, कि जब शाम के समय संत जी सतसंग करते, तो रात्रि के अन्धकार को दूर करने के लिए एक चिराग़ जलाकर उस बिल्ली के माथे पर चिराग़ रख देते थे।  यह दृश्य देखकर सतसंगीजनों को बड़ा आश्चर्य होता परन्तु वे कहते कुछ नहीं।एक दिन एक सतसंगी ने बिल्ली की हकीकत का पता लगाने की एक बेहतरीन युक्ति खोजी। वह सतसंगी कहीं से एक चूहा पकड़ लाया और उसे चादर में छुपाकर, चादर ओढ़कर सतसंग में गया। प्रतिदिन की तरह ही बिल्ली के माथे पर चिराग़ रख दिया गया और सतसंग शुरू कर दिया गया । कुछ ही समय पश्चात उस सतसंगी ने चुपके से वह चूहा बिल्ली के सामने छोड़ दिया । जैसे ही बिल्ली ने चूहे को देखा वो सब कुछ भूलकर चूहे पर झपट पड़ी और चिराग़ को नीचे गिरा दिया जिससे अंधेरा हो गया। आइए हम सब इस कहानी के आशय को समझने का प्रयास करते हैं। शायद हमसब भी उस बिल्ली की ही तरह है । जब तक सतसंग करते हैं या ज्ञान की बातें करते हैं या कोई इच्छित वस्तु हमारे सामने नहीं होती है, तब तक हम सब उस बिल्ली की तरह ही शान्त बने रहते हैं।जैसे ही हमारे सामने कोई इच्छित पदार्थ सामने आत...

कर्म और आशिर्वाद का फल

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इन्सान जैसा कर्म करता है, कुदरत या परमात्मा उसे वैसा ही उसे लौटा देता है एक बार द्रोपदी सुबह तड़के स्नान करने यमुना घाट पर गयी भोर का समय था। तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी। साधु स्नान के पश्चात अपनी दुसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोंके से उड़ पानी में चली गयी ओर बह गयी। सँयोगवश साधु ने जो लँगोटी पहनी वो भी फटी हुई थी। साधु सोच मे पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए। थोड़ी देर में सुर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड बढ़ जाएगी। साधु तेजी से पानी के बाहर आया और झाड़ी में छिप गया। द्रोपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साडी जो पहन रखी थी, उसमे आधी फाड़ कर उस साधु के पास गयी ओर उसे आधी साड़ी देते हुए बोली- तात मैं आपकी परेशानी समझ गयी। इस वस्त्र से अपनी लाज ढँक लीजिए। साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा ले लिया और आशीष दिया। जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान तुम्हारी लाज बचाएंगे। और जब भरी सभा मे चीरहरण के समय द्रोपदी की करुण पुकार नारद ने भगवान तक पहुंचायी तो भगवान ने कहा- " कर्मों के बदले मेरी कृपा बरसती है...

अक्षयतृतीयेला लाहामाइसाच्या क्रियेचा स्विकार

अक्षयतृतीयेला लाहामाइसाच्या क्रियेचा स्विकार अक्षयतृतीयेच्या दिवशी लखुबाईसांनी स्वामींना विनंती केली ," जी,जी,मी सर्वज्ञांच्या ठिकाणी अक्षयतृतीया करीन . स्वामींनी लखुबाईसांची विनंती स्विकारली . लखुबाईसांनी उपहार केला. सर्वज्ञांना तेल,उटणे लावून आंघोळ घातली.पूजावसर केला, ताट तयार केले,स्वामींचे जेवण झाले गुळुळा केला, पानांचा विडा दिला. सर्वज्ञांना घागरीत काही वेगवेगळे पदार्थ भरुन दिले ते पाहून लाहामाईसा दु:ख करु लागल्या 'ही लखुबाइसा दैवाभाग्याची . हिने सर्वज्ञानच्या ठाइ अक्षयतृतीया केली. मी दुर्दैवी माझ्या जवळ काहीच नाही, असे म्हणून दु:ख करु लागली. तेव्हा सर्वज्ञांनी लाहामाईसाला विचारले बाई, यांनी आमच्या ठायी अक्षयतृतीया केली . तुम्ही का करत नाही?  लाहामाईसा स्वामींना म्हणतात ,जी,जी,मजजवळ तर काहीच नाही? मग सर्वज्ञांनी सांगितले ," ही घागर घेऊन जा आतबाहेर धुवा.खोल पाण्यात बुडवून भरा व आम्हाला द्या. "मग आम्ही तुमची अक्षयतृतीया संपूर्ण चरितार्थ करु, "लाहामाइसा पटकन हो जी म्हणून घागर घेऊन गंगेला गेल्या आत बाहेर घासून स्वच्छ धुवून खोल पाण्यात बुडवून भरुन आणली व सर्वज्ञ...