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Showing posts from February, 2021

देव अनुभवावा लागतो

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काही गोष्टीच अशा असतात की, जाऊ म्हणता सुध्दा मनातून जाता जात नाहीत. ही पण अशीच गोष्ट. हे घडलंय एक प्रसिध्द शल्य विशारद डाॅ शैलेश मेहता यांच्या बाबतीत. "वर्ल्ड फेमस काॅर्डिऑलाॅजिस्ट, अहमदाबाद, राजकोट, बडोदा" इथे. सुसज्ज हॉस्पिटल्स, हाताखाली अनेक डॉक्टर्स, स्टाफ. केवळ अपाॅईंटमेंट साठी दोन दोन महिने आधी फोन करावा लागतो, असतात बडोद्याला. डाॅक्टर सांगताहेत आपल्या मित्राला - - मित्रा! २१ डिसेंबर रोजी एक कपल बडोद्याला माझ्या रूग्णालयात आले, बरोबर ६ वर्षाची एक छोटी मुलगी. केस पेपर तयार होताच माझ्या डाॅक्टरनी छोट्या मुलीला तपासलं. सर्व तपासण्या, चाचण्यांचे रिपोर्ट मी पाहताच मुलीच्या आई वडिलांना बोलावून त्यांना माझं मत सांगितले,  मुलीच्या हार्ट मध्ये प्रॉब्लेम आहे, ऑलरेडी आजार फार पुढच्या स्टेजला असल्याने तातडीने ऑपरेट करावं, अन्यथा जास्तीत जास्त ३ महिने. पण असल्या ऑपरेशनमध्येही survival rate is only 30 %. आई आणि बाबा दोघांचेही डोळे पाणावले. देवाला हात जोडून ती मला म्हणाली, डाॅक्टर आपण ऑपरेशन करा. मी मुलीला अ‍ॅडमिट करायला सांगून procedures पूर्ण करण्यास सांगितले. दुसरेच दिव...

देवदूत की हंसी

मृत्यु के देवता ने अपने एक दूत को भेजा पृथ्वी पर। एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियाँ जुड़वाँ – एक अभी भी उस मृत स्त्री के शव से लगी है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आँसू उसकी आँखों के पास सूख गए हैं – तीन छोटी जुड़वाँ बच्चियाँ और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा? उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया। उसने जाकर अपने प्रधान को कहा - मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है। तीन जुड़वाँ बच्चियाँ हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती। एक अभी भी मृत मां से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन दे दिया जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है। मृत्यु के देवता ने कहा - तो तू फिर समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी इच्छा से मृत्यु होती है, जिसकी इच्छा ...

विश्वास की परिभाषा

दंडवत प्रणाम  एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें...। बेटी ने ये भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते...!! जब संत घर आए तो पिता पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे। एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी। संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से ये कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई है। संत... "मुझे लगता है कि आप मेरी ही उम्मीद कर रहे थे... !" पिता... नहीं, आप कौन हैं... ? संत ने अपना परिचय दिया। और फिर कहा... "मुझे ये खाली कुर्सी देखकर लगा कि आप को मेरे आने का आभास था।" पिता... ओह ये बात... । खाली कुर्सी। आप...! आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाज़ा बंद करेंगे... ! संत को ये सुनकर थोड़ी हैरत हुई, फिर भी दरवाज़ा बंद कर दिया... । पिता.."दरअसल इस खाली कुर्सी का राज़ मैंने किसी को नहीं बताया। अपनी बेटी को भी नहीं। पूरी ज़िंदगी, मैं ये जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है। मंदिर जाता था, पुजारी जी के श्लोक सुनता।वो सिर के ऊपर से गुज़र जाते। कुछ पल्ले नहीं पड़ता था। मैंने फिर प्रार्थना की को...

श्रद्धा के फूल

एक बार किसी गांव में एक बडे संत महात्मा का अपने शिष्यो सहित आगमन हुआ। सब इस होड़ में लग गये कि क्या भेंट करें। इधर गाँव में एक गरीब मोची था। उसने देखा कि मेरे घर के बाहर के तालाब में बेमौसम का एक कमल खिला है। उसकी इच्छा हुई कि, आज नगर में महात्मा आए हैं, सब लोग तो उधर ही गए हैं, आज हमारा काम चलेगा नहीं, आज यह फूल बेचकर ही गुजारा कर लें। वह तालाब के अंदर कीचड़ में घुस गया। कमल के फूल को लेकर आया। केले के पत्ते का दोना बनाया..और उसके अंदर कमल का फूल रख दिया। पानी की कुछ बूंदें कमल पर पड़ी हुई हैं ..और वह बहुत सुंदर दिखाई दे रहा है। इतनी देर में एक सेठ पास आया और आते ही कहा-''क्यों फूल बेचने की इच्छा है ?'' आज हम आपको इसके दो चांदी के रूपए दे सकते हैं। अब उसने सोचा ...कि एक-दो आने का फूल! इस के दो रुपए दिए जा रहे हैं। वह आश्चर्य में पड़ गया। इतनी देर में नगर-सेठ आया । उसने कहा ''भई, फूल बहुत अच्छा है, यह फूल हमें दे दो'' हम इसके दस चांदी के सिक्के दे सकते हैं। मोची ने सोचा, इतना कीमती है यह फूल। नगर सेठ ने मोची को सोच मे पड़े देख कर कहा कि अगर पैसे कम हों, ...